ज़िंदगी जब कटी पतंग हो,
क्या हो जीने का अंदाज़ ?
बिखर जाएं अरमान सभी,
हो कैसे हंसने का आगाज़ ?
आकांक्षाओं की धूल से लिपटे,
जीवन के वे धुंधले तथ्य,
किसी सुखद संकेत की आशा,
कुछ मीठी अनुभूतियां अकथ्य।
जीवन को रसमय मान लें,
जीवन के रस की तलाश में
मिलन हो स्वप्न-यथार्थ जब,
झूठी-सच्ची इसी आस में।
क्यों हम करें कोई समझौता,
जब न मिल पाये खुशी,
क्यों आंसुओं से प्यास बुझाएं,
क्यों दर्शाएं नकली हंसी,
जीना है संतुष्टि को,
नहीं बनाएँ झूठे आदर्श।
अपना अलग अंदाज़ हो,
तभी बने जीवन निष्कर्ष।
– किशोर विमल
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ये कविता किशोर विमल( Vimal Rana ) द्वारा अमर उजाला काव्य वेबसाइट पर लिखी गयी है