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ख्वाब से अब जरा जगने लगी, जिंदगी को बेहतर समझने लगी हूँ ! उड़ती थी शायद कभी ऊंची हवा में, जमीन पर अब पैदल चलने लगी हूँ ! लफ्जों की अब मुझको जरूरत नहीं है, चेहरों को जब से मैं पढ़ने लगी हूँ ! दुनिया के बदलते रंगों को देखकर, शायद में कुछ-कुछ बदलने लगी हूँ ! परवाह नहीं कोई साथ चले मेरे हमदम , मैं अकेले ही आगे बढ़ने को मचलने लगी हूँ ! कोई समझे या ना समझे मुझे अब फर्क नहीं, शायद जिंदगी को पहले से बेहतर मैं समझने लगी हूँ !

जिंदगी को बेहतर समझने लगी हूँ

Best life poem in Hindi ख्वाब से अब जरा जगने लगी, जिंदगी को बेहतर समझने लगी हूँ ! उड़ती थी शायद कभी ऊंची हवा में, जमीन पर अब पैदल चलने…

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