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निष्कर्ष कविता – किशोर विमल

ज़िंदगी जब कटी पतंग हो, क्या हो जीने का अंदाज़ ? बिखर जाएं अरमान सभी, हो कैसे हंसने का आगाज़ ? आकांक्षाओं की धूल से लिपटे, जीवन के वे धुंधले…

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